मोतीलाल नेहरू
पंडित मोतीलाल नेहरू भारत की अनुपम विभूतियों में से थे जिन्होंने अपने सुख और ऐश्वर्य के जीवन को छोड़ भारत की आजादी के लिए त्याग तपस्या का जीवन अपनाया। जिस तरह गौतम बुद्ध ने विश्व की भलाई के लिए राज्य का परित्याग किया, लोगों को सत्य और अहिंसा की जीवनपर्यन्त शिक्षा देते हुए निर्वाण प्राप्त किया, उसी तरह पंडित मोतीलाल नेहरू ने अपना शान-शौकत से भरा जीवन छोड़ देश की आजादी के लिए जेल की यात्रा करना पसन्द किया ये ही क्यों, उनका सारा परिवार मानो जेल को ही दूसरा घर मानने लगा था।
मोतीलाल नेहरू – Motilal Nehru
पंडित मोतीलाल नेहरू भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक ऐसे मोती थे जिन्होंने जवाहर को पैदा किया जिस जवाहर ने स्वतंत्र भारत का अपने हाथों निर्माण किया। यही नहीं उनकी पोती श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने भी भारत का नाम अपने प्रधानमंत्री काल में आगे बढ़ाया और अंत में मूलभूत सिद्धान्तों के लिए शहीद हुई। मोती नेहरू के प्रदौहित्र श्री राजीव गाँधी बड़ी ईमानदारी और निष्ठा से देश के प्रधानमंत्री के रूप में के उत्थान के लिए सचेष्ट रहे और मूल्यों के लिए स्वयं को शहीद कर दिया।
विश्व में शायद मोतीलाल नेहरू का ही एक ऐसा परिवार है जो चार पीढ़ियों से जनतांत्रिक तरीके से देश का सर्वोच्च पद प्राप्त करता रहा है। पंडित मोतीलाल नेहरू के पूर्वज कश्मीर से आकर दिल्ली के आस-पास बस गये। नहर के किनारे होने के कारण उनकी वंशानुगत उपाधि कौल से हटकर नेहरू हो गयी।
जन्म – मोतीलाल नेहरू के पूज्य पिता का नाम पंडित गंगाधर नेहरू और माता का नाम जीयोरानी के नेहरू था। गंगाधरजी दिल्ली में साधारण कोतवाल थे। परम्परा के अनुसार उनका विवाह बचपन में ही हो गया था। उनके तीन पुत्र हुए- नन्दलाल नेहरू, वंशीधर नेहरू और मोतीलाल नेहरू । पंडित मोतीलाल नेहरू का जन्म 6 मई, 1861 ई. को आगरा में हुआ।
यह संयोग है कि विश्वकवि रवीन्द्र ठाकुर का जन्म 7 मई, 1861 को हुआ। यही नहीं, यह भी एक सुखद संयोग ही कहा जायेगा कि 1861 ई. में ही ब्रिटिश सरकार ने भारतीय कोसिल विधेयक पारित किया जिसका उद्देश्य भारतीयों का शासन में सहयोग लेना था।
मोतीलाल नेहरू – Motilal Nehru
शिक्षा – मोतीलाल जी की प्रारंभिक शिक्षा दिल्ली में ही शुरू हुई लेकिन कानपुर से उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की। इसके बाद इलाहबाद के म्योर सेन्ट्रल कॉलेज में दाखिल हुए। बी.ए. में एक पर्चा बिगड़ जाने के कारण परीक्षा ही नहीं दी। लेकिन मोतीलाल जी हतोत्साह होने वाले युवक तो थे नहीं।
उन्होंने हाईकोर्ट के वकील की परीक्षा सम्मान के साथ पास की। पंडित मोतीलाल का बचपन बहुत सुखद नहीं कहा जा सकता। जवानी में ही उनके पिता गंगाधर नेहरू का स्वर्गवास हो गया। अतः परिवार का भार उनके बड़े भाई नन्दलाल नेहरू को ही वहन करना पड़ा। पंडित मोतीलाल नेहरू का विवाह तत्कालीन कश्मीर परम्परा के अनुसार विद्यार्थी जीवन में ही हो गया।
उन्हें एक पुत्र रत्न भी प्राप्त हुआ था लेकिन उनकी पत्नी और पुत्र दोनों का देहावस हो गया। अतः उन्होंने अपनी दूसरी शादी स्वरूपरानी के साथ की जिन्हें जवाहरलाल नेहरू की माता होने का गौरव प्राप्त हुआ। पंडित मोतीलाल ने कानपुर में वकालत आरम्भ की। बाद में ये इलाहाबाद चले गये जहाँ उनके बड़े भाई श्री नन्दलाल नेहरू वकील थे।
कुछ ही दिनों बाद नन्दलालजी की भी मृत्यु हो गयी। अब नन्दलाल जी के पूरे परिवार का भार भी मोतीलाल जी के ऊपर आ पड़ा। मोतीलाल जी की वकालत में लोकप्रियता बढ़ती गयी। कुछ ही दिनों में वे नामी वकीलों में गिने जाने लगे। 20वीं शताब्दी के आरम्भ में ही वे भारत के विशिष्ट वकीलों में गिने जाने लगे। उनकी प्रतिभा अद्भुत थी।
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Pandit Jawaharlal Nehru – पंडित जवाहरलाल नेहरू
बुलन्द आवाज, स्पष्ट उक्ति और विधि का सम्यक् ज्ञान न्यायाधीशों को बिना प्रभावित किये नहीं रहता। उनकी प्रतिभा की प्रशंसा चीफ जस्टिस सर ग्रिमवुड ने स्वयं की है। मोतीलाल जी शीघ्र ही एक विशिष्ट नागरिक बन गये एक राजा से उन्होंने इलाहाबाद में एक मकान खरीदा जिसे आनन्द भवन कहते थे।
पंडित मोतीलाल नेहरू और भारत कि राजनीति – बाद में आनन्द भवन भारत की राजनीति का केन्द्र स्थल बना रहा। आनन्द भवन के एक भाग के अन्दर कांग्रेस की बैठक होती रहती जिसे स्वराज भवन कहा जाता है। 14 नवंबर 1889 ई. में इसी आनन्द भवन में जवाहरलाल जी का जन्म हुआ। जैसे राजा दशरथ को अयोध्या में राम के जन्म से खुशी हुई थी वैसे ही मोतीलाल जी जवाहरलान के जन्म से खुश हुए होंगे। बाद में मोतीलाल जी को दो पुत्रियाँ भी हुई जिनका नाम विजयालक्ष्मी, और कृष्णा था।
पंडित मोतीलाल नेहरू पाश्चात्य वेशभूषा और रहन-सहन से काफी प्रभावित हुए। उनकी योग्यता और शान-शौकत के समक्ष बहुत से अंग्रेज भी नहीं टिक पाते थे। उनके यहां अंग्रेज पदाधिकारी पहले जमघट लगाये रहते, यहाँ तक कि अपने पुत्र जवाहरलाल की शिक्षा का भार भी उन्होंने एक अंग्रेज महिला को दिया।
पश्चिमी सभ्यता से प्रभावित होने के बावजूद भी मोतीलाल जी अपने देश को बेहद प्यार करते थे। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के ये सक्रिय सदस्य बन गये। पहले तो वे सुरेन्द्रनाथ बॅनर्जी, गोपालकृष्ण गोखले की तरह नरम दल में ही थे, लेकिन गांधीजी के प्रभाव में आकर ये सरकार का दिल खोलकर विरोध करने लगे। पिता-पुत्र ने गाँधीजी द्वारा संचालित असहयोग आन्दोलन का समर्थन किया। ये अपनी योग्यता और कर्मठता के चलते भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के दो बार अध्यक्ष बनाये गये–1919 और 1929 में।
मोतीलाल नेहरू – Motilal Nehru
1922 ई. में गांधीजी ने असहयोग आन्दोलन को स्थगित कर दिया जिससे बहुत से कांग्रेसी क्षुब्ध हो गये। 1922 ई. में ‘गया’ में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अधिवेशन हुआ जिसकी अध्यक्षता देशबन्धु चितरंजन दास ने की। अपने अध्यक्षीय भाषण में श्री दास ने गाँधी जी के कार्यक्रम की आलोचना की। उन्होंने कहा कि अभी राष्ट्र को एक नये कार्यक्रम की आवश्यकता है।
दल दो गुटों में विभक्त हो गया। एक गाँधीवादी नीतियों का समर्थक, दूसरा विरोधी। गाँधीवादियों के नेता राजगोपालाचारी थे। इधर गाँधीवादी नीतियों के विरोधी नेता पंडित मोतीलाल नेहरू, चितरंजन दास, विट्ठल भाई पटेल आदि थे। दास और नेहरू के नेतृत्व में स्वराज दल के गठन की घोषणा की गई। जनवरी 1923 ई. में स्वराज दल की प्रथम बैठक इलाहाबाद में हुई। यह सब पंडित मोतीलाल नेहरू की दक्षता का फल था कि स्वराज पार्टी शीघ्र ही लोकप्रिय होती गई।
कांग्रेस कोसिल के प्रवेश को लेकर दो भागों में बँट चुकी थी। गांधीवादी यथास्थिति बनाए रखने के पक्ष में थे तो स्वराज दल वाले कौंसिल-प्रवेश के पक्षधर थे। 1921 ई. के । अप्रैल से द्वैत शासन प्रणाली ब्रिटिश प्रान्तों में लागू कर दी गई। स्वराज दल वाले कौंसिल में प्रवेश कर भीतर से ही सरकार को खोखला करना चाहते थे। उनकी मंशा सरकार को बदनाम करने और उसकी नीति में अडगा अटकाना था।
मोतीलाल नेहरू – Motilal Nehru
मौलाना आजाद के प्रयत्नों के फलस्वरूप कांग्रेस पार्टी टूटी तो नहीं लेकिन स्वराजियों को कौंसिल में प्रवेश करने की अनुमति मिल गयी। 1924 में कौसिल का चुनाव हुआ जिसमें पंडित मोतीलाल नेहरू और सी. आर. दास के चमत्कारपूर्ण नेतृत्व के कारण बंगाल, संयुक्त प्रान्त, मध्य भारत आदि की कोसिलों में उसे बहुमत मिला।
केन्द्रीय धारा सभा में स्वराज दल के 45 लोग चुने गये। विरोधी दल के नेता पंडित मोतीलाल नेहरू को ही निर्वाचित किया गया। पंडितजी की। कुशल वक्तृत्व कला से सारा सदन मंत्रमुग्ध हो जाता। एक अंग्रेज पदाधिकारी ने कहा कि हिसे कुशल वक्ता इंगलैण्ड में भी बहुत कम हुए हैं। स्वराज पार्टी का नेतृत्व बड़ी खूबी के साथ मोतीलाल जी ने किया परन्तु सी. आर. दास की 1925 ई. में मृत्यु के बाद पार्टी में बिखराव आया जिसे वे रोक न सके।
पुनः गाँधीजी के साथ मिलकर काम करने लगे। 1927 ई. में साइमन आयोग के गठन की घोषणा सरकार ने की। इस आयोग में भी भारतीय सदस्य नहीं था। अतः भारत वे दल वालों ने मिलकर इसका बहिष्कार किया। जब 7 फरवरी, 1928 ई. में बम्बई में सर प्रायः सभी जॉन साइमन आया तो ‘साइमन वापस जाओ’ के नारे से सारा आकाश गूंज उठा।
वृद्ध मोतीलाल नेहरू ने भी घूम-घूमकर साइमन आयोग के विरुद्ध जनमत तैयार किया संयुक्त प्रान्त में उनके पुत्र पंडित जवाहरलाल और गोविन्दबल्लभ पन्त ने आयोग के खिलाफ प्रदर्शन किया तो लाहौर में लाला लाजपत राय ने आयोग का विरोध करते करते जान की बाजी लगा दी। पंडित मोतीलाल नेहरू ने बिरकेन हेड की चुनीती को स्वीकार किया।
मोतीलाल नेहरू – Motilal Nehru
थिरकेन हेड उस समय भारत सचिव था। उसने भारतीयों को ललकारते हुए कहा कि साइमन आयोग का विरोध करने से कोई लाभ होने वाला नहीं है, आप लोग मिलकर कभी भी देश के लिए भावी संविधान नहीं बना सकते भारतीयों ने इस चुनौती को स्वीकारा। 1928 ई. की 28 फरवरी को दिल्ली में सर्वदलीय सम्मेलन हुआ।
पुनः उसकी बैठक 10 मई 1928 में की गई। पंडित मोतीलाल नेहरू को ही संविधान बनाने के लिए अध्यक्ष चुना गया और जवाहरलाल जी को सचिव इनके अतिरिक्त और भी दलों के प्रतिनिध इसमें रखे गये तीन महीन के अंदर ही पंडित मोतीलाल नेहरू ने भावी संविधान का स्वरूप पेश किया जिसे ‘नेहरू रिपोर्ट’ कहा जाता है।
‘नेहरू रिपोर्ट’ पंडित मोतीलाल नेहरू की प्रकाण्ड विद्वत्ता, योग्यता और विशाल व्यक्तित्व का सूचक है। नेहरू रिपोर्ट हमारे नये सविधान का मार्गदर्शक भी है। उदाहरणार्थ, नेहरू रिपोर्ट की मुख्य बातों में औपनिवेशिक स्वराज और पूर्ण उत्तरदायी सरकार की स्थापना, प्रान्तीय स्वायत्तता, मौलिक अधिकार की व्यवस्था, साम्प्रदायिक चुनाव पद्धति की समाप्ति, सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना आदि थी।
मृत्यु – पंडित मोतीलाल नेहरू द्वारा प्रतिपादित नेहरू प्रतिवेदन को सरकार ने अस्वीकार कर दिया। लार्ड इरविन ने साफ कहा कि सरकार नेहरू प्रतिवेदन की अनुशंसा को मानने के लिए तैयार नहीं है। कुछ वर्षों के बाद ही महात्मा गाँधी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन शुरू किया जिसमें अन्य नेताओं के साथ मोतीलाल ने भी भाग लिया। जेल की यात्रा करते-करते अब वे थक चुके थे।
मोतीलाल नेहरू – Motilal Nehru
शरीर जर्जर हो चुका था। सरकार को बाध्य होकर 1931 ई. में उन्हें जेल से रिहा करना पड़ा। उनकी इच्छानुसार उनके निवास स्थान पर ही कांग्रेस कार्यकारिणी समिति की बैठक बुलायी गयी। अस्वस्थ रहने पर भी वे देश और कांग्रेस की जीवनभर सेवा करते रहे। उन्हें इलाज के लिए लखनऊ ले जाया गया परन्तु इस बार वे बच न सके। 6 फरवरी, 1931 को भारत का महान राजनीतिज्ञ, उद्भट विद्वान्, यशस्वी एवं कुशल वक्ता भारत से सदा के लिए उठ गया।
मोतीलाल जी की मृत्यु से तत्कालीन राजनीतिक जगत में जो रिक्तता आयी उसे आसानी से नहीं भरा जा सका। पंडित मोतीलाल नेहरू जी का नाम भारतीय इतिहास में अमर है। और अमर रहेगा।